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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (२) सम्मा-जिस प्रतिलेखना में वस्त्र के कोने मुड़े ही रहें अर्थात् सल न निकाले जायँ वह सम्मर्दा प्रतिलेखना है । अथवा प्रतिलेखना के उपकरणों पर बैठकर प्रतिलेखना करना सम्मर्दा प्रतिलेखना है। (३) मोसली-जैसे कूटते समय मूसल ऊपर नीचे और तिर्ने लगता है उसी प्रकार प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊपर नीचे या तिचे लगाना मोसली प्रतिलेखना है । (४) प्रस्फोटना-जिस प्रकार धृल से भरा हुआ वस्त्र जोर से झड़काया जाता है उसी प्रकार प्रतिलेखना के वस्त्र को जोर से झड़काना प्रस्फोटना प्रतिलेखना है। (५) विक्षिप्ता–प्रतिलेखना किए हुए वस्त्रों को विना प्रतिलेखना किए हुए वस्त्रों में मिला देना विक्षिप्ता प्रतिलेखना है। अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र के पल्ले आदि को ऊपर की ओर फेंकना विक्षिप्ता प्रतिलेखना है। (६) वेदिका–प्रतिलेखना करते समय घुटनों के ऊपर नीचे
और पसवाड़े हाथ रखना अथवा दोनों घुटनों या एक घुटने को भुजाओं के बीच रखना वेदिका प्रतिलेखना है। वेदिका के पांच भेद पांचवे बोल नं. ३२२ में दिये जा चुके हैं।
(ठाणांग ६ सूत्र ५०३) (उत्तराध्ययन अध्ययन २६ गाथा २६) ४५०-गण को धारण करने वाले के छः गुण
छः गुणों वाला साधु गण अर्थात् समुदाय को धारण कर सकता है अर्थात् साधु समुदाय को मर्यादा में रख सकता है। छः गुण ये हैं(१) श्रद्धा सम्पन्नता-गण धारण करने वाला दृढ श्रद्धालु