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श्री जैन सिद्धान्तबोल संग्रह
(१) अनर्तित-प्रतिलेखना करते हुए शरीर और वस्त्रादि को नचाना न चाहिये। (२) अवलित-प्रतिलेखना करते समय वस्त्र कहीं से मुड़ा न होना चाहिये । प्रतिलेखना करने वाले को भी शरीर बिना मोड़े सीधे बैठना चाहिये । अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र
और शरीर को चंचल न रखना चाहिए । (३) अननुबन्धी-वस्त्र को झड़काना न चाहिये । (४) अमोसली-धान्यादि कूटते समय ऊपर नीचे और तिळ लगने वाले मूसल की तरह प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊपर, नीचे या तिर्ने दीवाल आदि से न लगाना चाहिये। ( ५ ) पट्पुरिमनवस्फोटका (छः पुरिमा नव खोड़ा)
प्रतिलेखना में छः पुरिम और नव खोड़ करने चाहिये । वस्त्र के दोनों हिस्सों को तीन तीन बार खंखेरना छः पुरिम है। तथा वस्त्र को तीन तीन बार पूंज कर तीन बार शोधना नव खोड़ है। (६) पाणि-प्राण-विशोधन-वस्त्रादि पर चलता हुआ कोई जीव दिखाई दे तो उसको अपने हाथ पर उतार कर रक्षण करना।
(ठाणांग सूत्र १०३) (उत्तराध्ययन अध्ययन २६) ४४९-प्रमाद प्रतिलेखना छः ___प्रमाद पूर्वक की जाने वाली प्रतिलेखना प्रमाद पतिलेखना है । वह छः प्रकार की है(१) आरभटा-विपरीत रीति से या उतावल के साथ प्रतिलेखना करना अथवा एक वस्त्र की प्रतिलेखना अधूरी छोड़ कर दूसरे वस्त्र की करने लग जाना प्रारभटा प्रतिलेखना है।