________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
घातक होता है, क्योंकि निदान आर्तध्यान है।
(ठाणांग ६ सूत्र ५२४)(बृहत्कल्प उद्देशा ६) ४४५-प्रत्यनीक के छ: प्रकार
विरोधी सैन्य की तरह प्रतिकूल आचरण करने वाला व्यक्ति प्रत्यनीक कहलाता है।
प्रत्यनीक के छः भेद हैं--(१) गुरु प्रत्यनीक (२) गति प्रत्यनीक, (३) समूह प्रत्यनीक, (४) अनुकम्पा प्रत्यनीक, (५) श्रुत प्रत्यनीक, (६) भाव प्रत्यनीक । (१) गुरु प्रत्यनीक-आचार्य, उपाध्याय और स्थविर गुरु हैं। गुरु का जाति आदि से अवर्णवाद बोलना, दोष देखना, अहित करना, गुरु के सामने उनके वचनों का अपमान करना, उनके समीप न रहना, उनके उपदेश का उपहास करना, वैयावृत्य न करना आदि प्रतिकूल व्यवहार करने वाला गुरु प्रत्यनीक है। आचार्य,उपाध्याय और स्थविर के भेद से गुरु प्रत्यनीक के तीन भेद हैं । वय, श्रुत और दीक्षा पर्याय में बड़ा साधु स्थविर कहलाता है। (२) गति प्रत्यनीक-गति की अपेक्षा प्रतिकूल आचरण करने वाला गति प्रत्यनीक है । इसके तीन भेद हैं-इहलोक प्रत्यनीक, परलोक प्रत्यनीक और उभयलोक प्रत्यनीक । पंचाग्नितप करने वाले की तरह अज्ञानवश इन्द्रियों के प्रतिकूल आचरण करने वाला इहलोक प्रत्यनीक है। ऐसा करने वाला व्यर्थ ही इन्द्रिय और शरीर को दुःख पहुँचाता है और अपना वर्तमान भव बिगाड़ता है । इन्द्रिय-विषयों में आसक्त रहने वाला परलोक प्रत्यनीक है। वह आसक्ति भाव से अशुभ कर्म उपार्जित करता है और परलोक में दुःख भोगता है। चोरी