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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
जो साधु बैठा हुआ या खड़ा हुआ दीवाल, स्तम्भ आदि पर गिरता है, बारम्बार घूमता रहता है, पैरों का संकोच विस्तार करता रहता है तथा निश्चल आसन से नहीं बैठता वह स्थान कौकुचिक है। हाथ, पैर आदि अङ्गों को निष्पयोजन हिलाने वाला साधु शरीर कौकुचिक है।
जो साधु बाजा बजाता है, हास्योत्पादक वचन बोलता है, पशु-पक्षियों की नकल करता है, लोगों को हँसाने के लिए अनार्य देश की भाषा बोलता है, वह भाषा कौकुचिक है। (२) मौखरिक-जो बहुत बोलता है, या ऐसी बात कहता है कि सुनने वाला शत्रु बन जाता है , उसे मौखरिक कहते हैं । ऐसे साधु से असत्य भाषण की सम्भावना रहती है और वह सत्य वचन का घातक होता है । (३) चक्षु लोलुप-जो स्तूप आदि को देखते हुए, धर्म कथा या स्वाध्याय करते हुए, मन में किसी प्रकार की भावना भाते हुए चलता है, मार्ग में ईर्या सम्बन्धी उपयोग नहीं रखता, ऐसा चञ्चल साधु ईर्या समिति का घातक होता है। (४) तितिणक-आहार उपधि या शय्या न मिलने पर खेद वश बिना विचार जैसे तैसे बोल देने वाला तनुक मिजाज (तिंतिणक) साधु एषणा समिति का घातक होता है, क्योंकि ऐसे स्वभाव वाला साधु दुखी होकर अनेषणीय आहार भी ले लेता है। (५) इच्छा लोभिक-अतिशय लोभ और इच्छा होने से अधिक उपधि को ग्रहण करने वाला साधु निर्लोभता, निष्परिग्रहतारूप सिद्धिपथ का घातक होता है। (६)निदान कर्ता-चक्रवर्ती इन्द्र आदि की ऋद्धि का निदान करने वाला साधु सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप मोक्ष मार्ग का