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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला .
वाले मनुष्य भी क्षेत्रों के भेद से छः प्रकार के कहे जाते हैं। अथवा गर्भज मनुष्य के (१) कर्मभूमि, (२) अकर्मभूमि, (३) अन्तर्वीप तथा सम्मूर्छिम के (४) कर्मभूमि, (५) अकमभूमि, और (६) अन्तर्वीप इस प्रकार मनुष्य के छः भेद होते हैं।
(ठाणांग ६ उ०३ सू० ४६०)
४३८-ऋद्धिप्राप्त आर्य के छः भेद
जिसमें ज्ञान दर्शन और चारित्र ग्रहण करने की योग्यता हो उसे आर्य कहते हैं । इसके दो भेद हैं-ऋद्धिमाप्त और अनुद्धिमाप्त।
जो व्यक्ति अरिहन्त, चक्रवर्ती आदि ऋद्धियों को प्राप्त कर लेता है, उसे ऋद्धिमाप्त आर्य कहते हैं । आर्य क्षेत्र में उत्पन्न होने आदि के कारण जो पुरुष आर्य कहा जाता है उसे अनद्धिप्राप्त आर्य कहते हैं । ऋद्धिमाप्त आर्य के छः भेद हैं(१) अरिहन्त-राग द्वेष आदि शत्रुओं का नाश करने वाले अरिहन्त कहलाते हैं । वे अष्ट महापतिहार्यादि ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं। (२) चक्रवर्ती-चौदह रत्न और छः खण्डों के स्वामी चक्रवर्ती कहलाते हैं, वे सर्वोत्कृष्ट लौकिक समृद्धि सम्पन्न होते हैं। (३) वासुदेव-सात रत्न और तीन खण्डों के स्वामी वासुदेव कहलाते हैं । वे भी अनेक प्रकार की ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं। (४) बलदेव-वासुदेव के बड़े भाई बलदेव कहे जाते हैं। वे कई प्रकार की ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं । वलदेव से वासुदेव
और वासुदेव से चक्रवर्ती की ऋद्धि दुगुनी होती है । तीर्थंकर की आध्यात्मिक ऋद्धि चक्रवर्ती से अनन्त गुणी होती है। (५) चारण-आकाश गामिनी विद्या जानने वाले चारण कहलाते हैं। जंघाचारण और विद्याचारण के भेद से चारण