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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
इसके भी तीन भाग होंगे किन्तु उनका क्रम उल्टा रहेगा । अवसर्पिणी के तीसरे भाग के समान इस आरे का प्रथम भाग होगा। इस बारे में ऋषभदेव स्वामी के समान चौवीसर्वे भद्रकृत तीर्थकर होंगे। शिल्पकलादि तीसरे आरे से चले आएँगे इसलिए उन्हें कला आदि का उपदेश देने की आवश्यकता न होगी । कहीं २ पन्द्रह कुलकर उत्पन्न होने की बात लिखी है। वे लोग क्रमशः धिक्कार, मकार और हकार दण्ड का प्रयोग करेंगे। इस आरे के तीसरे भाग में राजधर्म यावत् चारित्र धर्म का विच्छेद हो जायगा। दूसरे और तीसरे त्रिभाग अवसर्पिणी के तीसरे आरे के दूसरे और पहले त्रिभाग के सदृश होंगे। (५-६) सुषमा और सुपम सुषमा नायक पांचवें और छठे आरे अवसर्पिणी के द्वितीय और प्रथम आरे के समान होंगे। _ विशेषावश्यकभाष्य में सामायिक चारित्र की अपेक्षा काल के चार भेद किए गए हैं । (१) उत्सर्पिणी काल,(२) अवसर्पिणी काल,(३) नोउत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल और (४) अकाल । उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी पहले वताए जा चुके हैं । महाविदेह आदि क्षेत्रों में जहां एक ही आरा रहता है अर्थात् उन्नति और अवनति नहीं हैं, उस जगह के काल को नोउत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल कहते हैं । अढ़ाई द्वीप से बाहर के द्वीप समुद्रों में जहाँ सूर्य चन्द्र वगैरह स्थिर रहते हैं और मनुष्यों का निवास नहीं है; उस जगह अकाल है अर्थात् तिथि, पक्ष, मास, वर्ष आदि काल गणना नहीं है।
सामायिक के चार भेद हैं-(१)सम्यक्त्व सामायिक (२) श्रुतसामायिक, (३) देशविरति सामायिक और (४) सर्व विरति सामायिक।