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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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स्थिर रहा। इस तरह उत्पाद, व्यय और ध्रुवता ये तीनों सिद्ध हैं । इसी रीति से धर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेशों में, आकाश के अनन्त प्रदेशों में, जीव के असंख्यात प्रदेशों में और पुद्गलों में भी ये तीनों परिणाम हर समय होते हैं । काल में भी ये तीनों परिणाम बराबर हैं। क्योंकि वर्तमान समय नष्ट होकर जब अतीत रूप होता है उस समय उसमें वर्तमान की अपेक्षा नाश, भूत की अपेक्षा उत्पत्ति और काल सामान्य रूप से व्यर्थात् स्थिरता रहती है ।
इस प्रकार स्थूल रूप से उत्पाद, व्यय और ध्रुवता बताए गए । ज्ञान आदि सूक्ष्म वस्तुओं में भी ये तीनों परिणाम पाए जाते हैं। क्योंकि ज्ञेय (ज्ञान का विषय ) के बदलने से ज्ञान भी बदल जाता है । पूर्व पर्याय की भासना (ज्ञान) का व्यय, उत्तर पर्याय की भासना की उत्पत्ति और दोनों अवस्थाओं में ज्ञानपने की स्थिरता होती है। इसी प्रकार सिद्ध भगवान में गुणों की प्रवृत्ति रूप नवीन पर्याय का उत्पाद, पूर्व पर्याय का नाश और सामान्यरूप से गुणों की ध्रुवता विद्यमान हैं। इस तरह सभी द्रव्यों में सत्व है । यदि अगुरुलघु का भेद न हो तो प्रदेशों में भी परस्पर भेद न हो । अगुरुलघु का भेद सभी द्रव्यों में है । जिस द्रव्य का उत्पाद, व्यय रूप सत्व एक है, वह द्रव्य भी एक है, और जिसका उत्पाद व्यय रूप सत्व भिन्न है, वह द्रव्य भी भिन्न है । जैसे कोई जीव मनुष्यत्व को खपा कर देव रूप में उत्पन्न होता है । यहाँ मनुष्यत्व का नाश और देवत्व की उत्पत्ति दोनों एक ही जीव में होते हैं। इसलिए इन दोनों का आश्रय जीव द्रव्य एक है । जहाँ उत्पन्न कोई दूसरा जीव हुआ और नाश
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