________________ 440 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अभाव हो जावेगा। ये दोनों बातें प्रमाण विरुद्ध हैं, क्योंकि न . तो प्रत्येक वस्तुसर्वरूप से 'अस्ति' है और न उस का सर्वरूप से अभाव ही है / 'अस्ति' भङ्ग के साथ स्वचतुष्टय लगा हुआ हैऔर नास्ति भङ्ग के साथ परचतुष्टय लगा हुआ है। अस्ति के प्रयोग से स्वचतुष्य की अपेक्षा ही अस्ति समझा जावेगा न कि सर्वत्र / इसी तरह नास्ति के कहने से परचतुष्टय की अपेक्षा नास्ति कहलायगा न कि सर्वत्र / इस प्रकार न तो प्रत्येक वस्तु व्यापक होगी और न अभाव रूप, परन्तु फिर भी एक ही भङ्ग के प्रयोग से काम नहीं चल सकता, क्योंकि दोनों भङ्गों से भिन्न भिन्न प्रकार का ज्ञान होता है / एक भङ्ग का प्रयोग करने पर भी दूसरे भङ्ग के द्वारा पैदा होने वाला ज्ञान नहीं होता / जैसे यदि कहा जाय कि अमुक आदमी बाजार में नहीं है, तो इससे यह सिद्ध नहीं होता कि वह अमुक जगह है / बाजार में न होने पर भी 'कहाँ है' यह जिज्ञासा बनी ही रहती है, जिसके लिए अस्ति भङ्ग की आवश्यकता है / व्यवहार में अस्ति भङ्ग का प्रयोग होने पर भी नास्ति भङ्ग के प्रयोग की भी आवश्यकता होती है। मेरे हाथ में रुपया है यह कहना एक बात है और मेरे हाथ में रुपया नहीं है, यह कहना दूसरी बात है / इस प्रकार दोनों भङ्गों का प्रयोग आवश्यक है। ___ अन्योन्याभाव से भी नास्ति भङ्ग की पूर्ति नहीं हो सकती, क्योंकि नास्ति भङ्ग का सम्बन्ध किसी नियत प्रभाव से नहीं है। अन्योन्याभाव को छोड़कर भागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव,ये तीनों संसर्गाभाव हैं। नास्ति भङ्ग का सम्बन्ध सभी से है। ___ यद्यपि 'अस्ति नास्ति' यह तीसरा पहिले दो भङ्गों के मिलाने से बनता है, फिर भी उसका काम अस्ति और नास्ति इन दोनों भङ्गों से अलग है। जो काम अस्ति नास्ति भङ्ग