________________ 432 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला सो ठीक नहीं है, क्योंकि इस प्रकार कहने से यह प्रतीत होता है किधर्मास्तिकायादि पाँचों का प्रदेश।जैसे पाँच पुरुषों ने मिलकर शामिल में सोना खरीदा,तो वह सोना पाँचों का कहा जायगा। इस प्रकार यदि धर्मास्तिकायादि पाँचों द्रव्यों का सामान्य एक प्रदेश हो, तभी 'पाँचों का प्रदेश' यह कहना उपयुक्त हो सकता है। परन्तु पाँचों द्रव्यों का सामान्य कोई प्रदेश नहीं है। क्योंकि प्रत्येक द्रव्य के प्रदेश भिन्न भिन्न हैं। इसलिये इस प्रकार कहना चाहिये ‘पाँच प्रकार का प्रदेश' जैसे धर्मप्रदेश इत्यादि। ___ इस प्रकार कहते हुये व्यवहार नय को ऋजुसूत्र कहता है कि 'पाँच प्रकार का प्रदेश' यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि ऐसा कहने का यह तात्पर्य होगा कि धर्मास्तिकाय आदि एक एक द्रव्य के पाँच पाँच प्रकार के प्रदेश / इस प्रकार प्रदेश के 25 प्रकार हो जायेंगे / इसलिये इस प्रकार कहो 'प्रदेश भाज्य है' अर्थात् प्रदेश धर्मास्तिकाय आदि पाँच के द्वारा विभाजनीय है। जैसे-स्यात्धर्म प्रदेश, इत्यादि / इस प्रकार प्रदेश के पाँच भेद सिद्ध होते हैं। ___ इस प्रकार कहते हुए ऋजुसूत्र को अब शब्द नय कहता है-- 'प्रदेश भाज्य है 'ऐसा कहना ठीक नहीं, क्योंकि ऐसा कहने से यह दोष आता है कि धर्मास्तिकाय का प्रदेश भी कभी अधर्मास्तिकाय का प्रदेश हो जावेगा और अधर्मास्तिकाय के प्रदेश भी धर्मास्तिकाय के प्रदेश हो जायँगे। जैसे एक ही देवदत्त कभी राजा का भृत्य और अमात्य हो जायगा / इस प्रकारनैयत्य के अभाव में अनवस्था दोष आता है। इसलिये इस प्रकार कहो 'धम्मो पएसे' अर्थात् धर्मात्मक प्रदेश / क्या यह प्रदेश धर्मास्तिकाय से अभिन्न होने पर धर्मात्मक कहा जाता है अथवा उसके एक प्रदेश से अलि होने पर ही, जैसे समस्त जीवास्तिकाय के एक देश