________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ___431 नय का मत है / शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत इन तीनों नयों का ऐसा मन्तव्य है कि सब पदार्थ अपने स्वरूप में वसते हैं प्रदेश का दृष्टान्त-प्रकृष्ट देश को प्रदेश कहते हैं अर्थात् वह भाग जिस का फिर भाग न हो। इस प्रदेश के दृष्टान्त से भी नयों का विवेचन किया जाता है। नैगम नय कहता है कि छः द्रव्यों का प्रदेश है। जैसे-धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश / जीव का प्रदेश, पुद्गलस्कन्ध का प्रदेश और काल का प्रदेश। इस प्रकार कहते हुए नैगम नय को उससे अधिक निपुण संग्रह नय कहता है कि जो तुम छः का प्रदेश कहते हो सो ठीक नहीं है, क्योंकि जो तुमने देश का प्रदेश कहा है वह असंगत है, क्योंकि धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य से सम्बन्ध रखने वाला देश का जो प्रदेश है, वह भी वास्तव में उसी द्रव्य का है जिससे कि देश सम्बद्ध है / क्योंकि द्रव्य से अभिन्न देश का जो प्रदेश है वह भी द्रव्य का ही होगा। लोक में भी ऐसा व्यवहार देखा जाता है। जैसे कोई सेठ कहता है कि मेरे नौकर ने गदहा रवरीदा / नौकर भी मेरा है, गदहा भी मेरा है, क्योंकि नौकर के मेरा होने से गदहा भी मेरा ही है / इसी प्रकार देश के द्रव्य सम्बन्धी होने के कारण प्रदेश भी द्रव्य सम्बन्धी ही है। इस लिये छः के प्रदेश मत कहो, किन्तु इस प्रकार कहो-- पाँच के प्रदेश इत्यादि / पाँच द्रव्य और उनके प्रदेश भी अविशुद्धसंग्रह नय ही मानता है / विशुद्ध संग्रह नय तो द्रव्यबाहुल्य और प्रदेशों की कल्पना को नहीं मानता। ___ इस प्रकार कहते हुए संग्रह नयको उस से भी अधिक निपुण व्यवहार नय कहता है - जो तुम कहते हो कि पाँच के प्रदेश,