________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 399 वह बोली- महाविदेह क्षेत्र में गमनागमन करते समय होने वाले विघ्नों को दूर करने के लिये आप लोग फिर कायोत्सर्ग कीजिए, जिससे मैं निर्विघ्न चली जाऊँ / संघ ने वैसा ही किया / वह भगवान् को पूछ वापिस आकर बोली-भगवान् फरमाते हैं-दुर्बलिका पुष्पमित्र और संघ की बात ठीक है। गोष्ठामाहिल झूठा है और यह सातवां निह्नव है। यह सुनकर गोष्ठामाहिल बोला- यह थोड़ी ऋद्धि वाली है। तीर्थङ्कर भगवान् के पास जाने की ताकत इसमें नहीं है। __ इस प्रकार भी जब वह नहीं माना तो संघ ने उसे बाहर निकाल दिया / आलोचना, प्रतिक्रमण तथा ठीक मार्ग का अवलंबन किये बिना ही उसका देहान्त हो गया। इस प्रकार सातवांगोष्ठामाहिल नाम का निह्नव समाप्त हुआ। (8) वोटिक निह्नव- स्थानाङ्ग सूत्र के सातवें बोल के प्रकरण में सात ही निह्नव हैं / मूल सूत्र में इन्हीं का निर्देश है / हरिभद्रीयावश्यक, और विशेषावश्यक भाष्य में आदि शब्द को लेकर आठवें वोटिक नाम के निह्नवों का वर्णन किया है। साथ में पहिले के सात निह्नवों को देशविसंवादी बताकर इन्हें प्रभूतविसंवादी कहा है / श्वेताम्बर समाज में यही कथा दिगम्बरों की उत्पत्ति का आधार मानी जाती है। इसकी ऐतिहासिक सत्यता के विचार में न पड़कर यहाँ पर उसकी कथा विशेषावश्यक भाष्य के अनुसार दी जाती है। भगवान महावीर की मुक्ति के छः सौ नौ वर्ष बाद वोटिक नाम के निदवों का मत शुरू हुआ। रथवीरपुर नगर के बाहर दीपक नाम का उद्यान था। वहाँ भार्यकृष्ण आचार्य प्राए / उसी नगर में सहस्रमल्ल शिवभूति नाम का राजसेवक रहता था / राजा की विशेष कृपादृष्टि