________________ 382 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला नहीं लाई जा सकती क्योंकि सारी कालाना असम्भव है और उससे प्रयोजन भी नहीं है / इसलिये वक्ता का अभिप्राय समझ कर ढेला या ईट वगैरह वस्तु लाई जाती है। प्रकरण से भी इसी बात का पता लगता है। इस प्रकार जब पृथ्वी के एक देश ढेले में पृथ्वी का व्यवहार हो गया तो ढेले के एक भाग में नोपृथ्वी का व्यवहार भी हो सकता है। शङ्का-जिस तरह ढेला पृथ्वीत्व जाति वाला होने से पृथ्वी है, उसी तरह ढेले का एक देश भी पृथ्वीत्व जाति वाला होने से पृथ्वी क्यों नहीं है ? यदि है तो उसे नोपृथ्वी क्यों कहा जाता है ? समाधान-वास्तव में देले का एक देश भी पृथ्वी ही है। उपचार से उसे नोपृथ्वी कहा जाता है / ढेले को जब पृथ्वी मान लिया गया तो उसके एक देश में नो शब्द का प्रयोग करके उसे नोपृथ्वी मान लिया गया है / वास्तव में पृथ्वी और नोपृथ्वी एक ही हैं। रोहगुप्त- नोअपृथ्वी लाओ। इस के उत्तर में देव ने देला और जल दोनों लाकर दे दिये / 'नो' शब्द के दो अर्थ हैं। सर्वनिषेध और देशनिषेध / प्रथम पक्ष में दो निषेधों के मिलने से 'नोअपृथ्वी' का अर्थ पृथ्वी हो गया / इस के उत्तर में देव ने ढेला ला दिया / देशनिषेध पक्ष में अपृथ्वी अर्थात् जलादि का एक देश ही नोपृथ्वी कहा जायगा / इसके उत्तर में देव ने जल ला दिया। - इसी तरह रोहगुप्त ने जलादि के लिये भी चार तरह के प्रश्न किये। कुल 144 प्रश्न हुए। वे इस प्रकार थे-षडुलूक ने पहिले छः मूल पदार्थों की कल्पना की / द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य विशेष और समवाय / द्रव्य के नौ भेद-भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश,काल, दिशा, आत्मा और मन ।गुण 17 हैं- रूप, रस,