________________ 364 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला अभाव स्वरूप होने वाला है, उसे अपनी और पराई सन्तान की चिन्ता से क्या मतलब ? शंका- सभी वस्तुएं क्षणिक हैं, क्योंकि अन्त में उनका नाश प्रत्यक्ष दिखाई देता है जैसे पानी / मुद्रादि के द्वारा घट का नाश सम्भव नहीं है क्योंकि वे किसी भी रूप में घट का नाश नहीं कर सकते / इसलिए प्रत्येक वस्तु का स्वभाव ही प्रतिक्षण नाश वाला मानना चाहिए। अगर प्रतिक्षण नाश न होगा तो अन्त में भी नाश नहीं हो सकेगा। ___ उत्तर- क्योंकि अन्त में नाश दिखाई देता है इसी हेतु से वस्तु में प्रतिक्षण नाश का अभाव भी सिद्ध किया जा सकता है। हम कह सकते हैं वस्तु प्रतिक्षण नष्ट नहीं होती क्योंकि अन्तिम क्षण में नाश दिखाई देता है, घटादि की तरह। यह नहीं कहा जा सकता कि युक्ति के विपरीत होने से यह उपलब्धि भ्रान्त है / क्योंकि इस प्रत्यक्षोपलब्धि से युक्तियाँ ही मिथ्या सिद्ध होंगी, जिस तरह शून्यवादी की युक्तियाँ। ___ यदि वस्तु का नाश प्रत्येक क्षण में समान रूप से होता रहता है तो अन्तिम क्षण में ही वह क्यों दिखाई देता है ? प्रथम और मध्य क्षणों में क्यों नहीं दिखाई देता ? यदि वस्तु का नाश सर्वत्र समान ही है तो मुद्रादि के द्वारा किया जाने पर विशेष रूप से क्यों मालूम होता है ? आदि और मध्य में भी उसी तरह क्यों नहीं मालूम पड़ता ? इत्यादि प्रश्नों का समाधान क्षणिकवाद में नहीं हो सकता। ___ 'अन्त में नाश दिखाई देने से इस हेतु में प्रसिद्ध दोष भी है। क्योंकि जैन दर्शन अन्तिम क्षण में भी वस्तु का सर्वनाश नहीं मानता। घट कपालावस्था में भीमृद्व्यरूप तो रहता ही है। अगर सर्वनाश हो तो वह कपाल रूप से भी न रहे,