________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला की अपेक्षा प्रत्येक वस्तु नित्य है / पर्याय की अपेक्षा प्रत्येक वस्तु अनित्य (क्षणिक) है। सर्वथा नित्य या सर्वथा चणिक मानने वाले दोनों एकान्त पक्ष मिथ्या है / शंका - पहिले बताए हुए आगमोक्त वचन से जीव क्षणिक सिद्ध होता है। इस को नित्य कहने से आगमविरोध हो जायगा। उत्तर- केवल आगम को प्रमाण मानकर चलने पर भी क्षणिककान्त की सिद्धि नहीं होती / पागम में जीव को क्षणिक बताने के साथ साथ नित्य भी बताया है। भगवती मूत्र में नीचे लिखे आशय वाला पाठ हैहे भगवन् ! जीव शाश्वत है या अशाश्वत ? गौतम ! जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। भगवन् ! यह किस आधार पर कहा जाता है कि जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी ? गौतम ! द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा जीव शाश्वत है और पर्यायाथिक नय की अपेक्षा अशाश्वत / नारकी जीव भीशाश्वत और अशाश्वत दोनों हैं। (भगवती शक्तक 7 उद्देशा 2) ___ 'पडप्पन्नसमय नेरइया' इत्यादि जो आगम वाक्य पहिले दिया है उस से सर्वथा क्षणिकत्व सिद्ध नहीं होता / उसमें दिया गया है कि प्रथम समय के नारक नष्ट हो जायँगे। इसका तात्पर्य यह हुआ कि समय बदल जायगा / प्रथम के स्थान पर द्वितीय हो जायगा / नारकी दोनों समय में एक ही रहेगा / यदि सर्वथा परिवर्तन हो जाय तो 'प्रथम समय में उत्पन्न हुआ' यह विशेषण व्यर्थ हो जाय / प्रत्येक समय में नया नया नारकी उत्पन्न हो तो वह सदा प्रथमसामयिक ही रहे। नारकी जीव के स्थिर रहने पर हीप्रथम द्वितीय या तृतीय समय वाला यह विशेषण उपपन्न हो सकता है।