________________
३३२
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
का तीसरा भाग वृद्धि होती है अर्थात् शर्कराप्रभा में छः योजन एक तिहाई (६-१३)। वालुकाप्रभा में छः योजन दो तिहाई (६-२३)। पङ्कप्रभा में ७ योजन । धूमप्रभा में सात योजन एक तिहाई (७-१॥३) । तमःप्रभा में सात योजन दो तिहाई (७-२॥३)। महातमःप्रभा में आठ योजन।
घनवातवलय का बाहल्य ( मोटाई ) रत्नप्रभा के चारों ओर प्रत्येक दिशा में साढ़े चार योजन है। आगे की नरकों में एक एक कोस अधिक बढ़ता जाता है अर्थात् शर्कराप्रभा में एक कोस कम पाँच योजन। वालुकापभा में पांच योजन । पंकप्रभा में सवा पाँच योजन । धूमप्रभा में साढ़े पाँच योजन । तमःप्रभा में पौने छः योजन । महातमःमभा में पूरे छः योजन ।
रत्नप्रभा पृथ्वी के चारों तरफ तनुवातवलय का बाहल्य प्रत्येक दिशा में छः कोस है । इस के बाद हर एक पृथ्वी में कोस का तीसरा भाग बाहल्य अधिक है अर्थात् शर्कराप्रभा में छः कोस एक तिहाई (६-१:३)। वालुकाप्रभा में छः कोस दो तिहाई (६--२३)। पंकप्रभा में सात कोस । धूमप्रभा में सात कोस एक तिहाई (७-१।३) । तमःप्रभा में सात कोस दो तिहाई (७-२।३)। महातम:प्रभा में आठ कोस ।
घनोदधिवलय, धनवातवलय और तनुवातवलय का बाहल्य मिलाने से प्रत्येक पृथ्वी और अलोकाकाश के बीच का अन्तराल ऊपर लिखे अनुसार निकल आता है। घनोदधि रत्नप्रभा पृथ्वी को घेरे हुए वलयाकार स्थित है। घनवात घनोदधि को तथा तनुवात घनवात को । सभी पृथ्वियों में यही क्रम है।
प्रत्येक पृथ्वी असंख्यात हजार योजन लम्बी तथा असंख्यात हजार योजन चौड़ी है। सभी की लम्बाई और चौड़ाई दोनों बराबर हैं। हर एक की परिधि असंख्यात हजार योजन है।