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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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कहते हैं। वे नरक सात पृश्चियों में विभक्त हैं। अथवा मनुष्य
और पशु जहाँ पर अपने अपने पापों के अनुसार भयङ्कर कष्ट उठाते हैं उन्हें नरक कहते हैं। सातों पृथ्वियों के नाम, स्वरूप और वर्णन नीचे दिये जाते हैं।
नाम- (१) घम्मा, (२) बंसा, (३) सीला, (४) अंजना, (५) रिहा, (६) मघा, (७) माधवई । इन सातों के गोत्र हैं(१) रत्नप्रभा,(२)शर्करामभा, (३) वालुकाप्रमा, (४) पङ्कममा (५) धूमप्रभा, (६) तमःप्रभा और (७) महातम:मभा।
शब्दाथे से सम्बन्ध न रखने वाली अनादिकाल सेप्रचलित संज्ञा को नाम कहते हैं। शब्दार्थ का ध्यान रखकर किसी वस्तु को जो नाम दिया जाता है उसे गोत्र कहते हैं। घम्मा आदि सात पृथ्वियों के नाम हैं और रत्नप्रभा आदि गोत्र । (१) रत्नकाण्ड की अपेक्षा से पहिली पृथ्वी को रवप्रभा कहा
जाता है। (२) शर्करा अर्थात् तीखे पत्थर के टुकड़ों की अधिकता होने
के कारण दुसरी पृथ्वी को शर्करामभा कहा जाता है। (३) वालुका अर्थात् बालू रेत अधिक होने से तीसरी पृथ्वी
को वालुकाममा कहा जाता है। (४) कीचड़ अधिक होने से चौथी को पङ्कप्रभाकहा जाता है। (५) धूएं के रंगवाले द्रव्यविशेष की अधिकता के कारण
पाँचवीं पृथ्वी का गोत्र धृमप्रभा है। (६) अन्धकार की अधिकता के कारण छठी नरक को तमाप्रमा
कहा जाता है। (७) महातमस् अर्थात् गाढ अन्धकार से पूर्ण होने के कारण सातवीं नरक को महातमःप्रभा कहा जाता है। इसकोतमस्तमा मभा भी कहा जाता है, उसका अर्थ है जहाँ निबिड़ (घोर)