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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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पूर्वभाद्रपदा का उदय नहीं हुआ था क्योंकि अभी उत्तरभाद्रपदा का उदय नहीं है । पूर्वभाद्रपदा का उत्तरचर है उत्तरभाद्रपदा । इसलिये उत्तरभाद्रपदा के उदय की अनुपलब्धि से पूर्वकालीन पूर्वभाद्रपदा के उदय का प्रतिषेध किया गया। (७) अविरुद्ध सहचरानुपलब्धि- जहाँ साथ रहने वाली दो वस्तुओं में से एक के न रहने पर दूसरी का अभाव सिद्ध किया जाय । जैसे- इसे सम्यग्ज्ञान नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शन नहीं है। सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन दोनों सहचर अर्थात् एक साथ रहने वाले हैं। इसलिये एक के न होने से दूसरे का निषेध किया जा सकता है।
(प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार परिच्छेद ३ सूत्र ६५-१०२) ५५७- व्युत्सर्ग सात
निःसंग अर्थात् ममत्वरहित होकर शरीर और उपधि के त्याग को व्युत्सर्ग कहते है। इसके सात भेद हैं(१)शरीरव्युत्सर्ग-ममत्वरहित होकर शरीर का त्याग करना । (२) गणव्युत्सर्ग- अपने सगे सम्बन्धी या शिष्य वगैरह का
त्याग करना गणव्युत्सर्ग कहलाता है। (३) उपधिव्युत्सर्ग-भाण्ड उपकरण आदि का त्याग करना। (४) भक्तपानव्युत्सर्ग-- आहार पानी का त्याग करना । (५) कषायव्युत्सर्ग-क्रोध, मान, माया, लोभ को छोड़ना। (६)संसारव्युत्सर्ग-नरक आदि आयुबन्ध के कारण मिथ्यात्व
वगैरह का त्याग करना संसार व्युत्सर्ग है। (७) कर्मव्युत्सर्ग- कर्मबन्धन के कारणों का त्याग करना।
ऊपर के सात व्युत्सर्गों में से पहले चार द्रव्यव्युत्सर्ग हैं और अन्तिम तीन भावव्युत्सर्ग ।
. (उववाई सत्र २०)