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श्रीसेठिया जैन अन्धमाला
(५) उभयतःखा-त्रसनाड़ी के बाहर से बाएं पसवाड़े से प्रवेश करके त्रसनाड़ी द्वारा जाते हुए दाहिने पसवाड़े में जीव या पुद्गल जिस श्रेणी से पैदा होते हैं उसे उभयतःखा कहते हैं। (६) चक्रवाल- जिस श्रेणी के द्वारा परमाणु वगैरह गोल चक्कर खाकर उत्पन्न होते हैं। (७) अर्धचक्रवाल- जिस श्रेणी के द्वारा आधा चक्कर खाकर उत्पन्न होते हैं।
(भगवती शतक २५ उद्देशा ३)(ठाणांग सूत्र ५८०) ५४५- श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय के सात भेद
बादर पृथ्वीकाय के दो भेद हैं- श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय और खर बादर पृथ्वीकाय। खर बादर पृथ्वीकाय के ३६ भेद हैंकंकर, पत्थर, नमक, सोना चान्दी ताम्बा आदि धातुएं तथा हिंगलु, हरताल, सुरमा, अभ्रक, वज्ररत्न, मणि और स्फटिक
आदि । श्लक्षण बादर पृथ्वीकाय के सात भेद हैं(१) काली मिट्टी, (२) नीली मिट्टी, (३) लाल मिट्टी, (४) पीली मिट्टी, (५) सफेद मिट्टी, (६) पांडु मिट्टी अर्थात् थोड़ा सा पीलास ली हुई चिकनी मिट्टी और (७) पनक मिट्टी अर्थात नदी वगैरह का पूर खत्म हो जाने के बाद बची हुई मिट्टी जो बहुत साफ तथारजकरणमयी होती है।
(पनवणा पद १ सूत्र १६) ५४६- पुद्गल परावर्तन सात
आहारक शरीर को छोड़कर औदारिकादि प्रकार से रूपी द्रव्यों को ग्रहण करते हुए एक जीव के द्वारा समस्त लोकाकाश के पुद्गलों का स्पर्श करना पुद्गल परावर्तन है । जितने काल में एक जीव समस्त लोकाकाश के पुद्गलों का स्पर्श करता है, उसे भी पुद्गल परावर्तन कहते हैं । इसका काल असंख्यात