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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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उपदेश देकर उसे जीत लिया । हार जाने पर क्रोधित होती हुई चोक्षा जितशत्रु राजा के पास आई । राजा ने पूछा-चोले! तुम बहुत घूमती हो । क्या मेरी रानियों सरीखी कोई सुन्दरी देखी है ? उसने कहा- विदेहराज की कन्या को देखते हुए तुम्हारी रानियाँ उसका लाखवाँ भाग भी नहीं हैं। राजा जितशत्रु ने भी मल्लिकुँवरी को वरने के लिए दूत भेज दिया।
छहों दूतों ने जाकर अपने अपने राजाओं के लिए मल्लिकुँवरी को मांगा । उसने उन्हें दुत्कार कर पिछले द्वार से निकाल दिया। दूतों के कथन से क्रोध में आकर सभी राजाओं ने मिथिला पर चढ़ाई कर दी । उनको आते हुए सुनकर कुम्भक राजा भी अपनी सेना को लेकर युद्ध के लिए तैयार हो कर राज्य की सीमा पर जा पहुँचा और उन की प्रतीक्षा करने लगा । राजाओं के पहुँचते ही भयङ्कर युद्ध शुरू हुआ। दूसरे राजाओं की सेना अधिक होने के कारण कुम्भक की सेना हार गई। उसने भाग कर किलेबन्दी कर ली। विजय का कोई उपाय न देख कर व्याकुल होते हुए कुम्भक राजा को मल्लिकुँवरी ने कहा- आप प्रत्येक राजा के पास अलग अलग सन्देश भेज दीजिये कि कन्या उसे ही दी जावेगी और छहों को नगर में बुला लीजिए। ___ छहों आकर नए बनाए हुए घर के कमरों में अलग अलग बैठ गए । सामने मूर्ति को साक्षात् मल्लिकुँवरी समझते हुए एकटक होकर देखने लगे। इतने में मल्लिकुँवरी ने वहाँ आकर मूर्ति का ढक्कन खोल दिया । चारों तरफ भयानक दुर्गन्ध फैलने लगी। राजाओं ने नाक ढक कर मुँह फेर लिए । मल्लि ने पूछा- "आप लोगों ने नाक बन्द करके मुँह क्यों फेर लिए? अगर सोने की मूर्ति में डाला हुआ सुगन्धित तथा मनोज्ञ आहार भी इस प्रकार दुर्गन्धिवाला हो सकता है तो मल, मूत्र, खेल आदि