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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाज
हैं। व्यवहार नय की अपेक्षा जब दिशाओं का निश्चय किया जाता है अर्थात् जिधर सूर्योदय हो उसे पूर्व कहा जाता है तो ये सभी क्षेत्र मेरु पर्वत से दक्षिण की तरफ हैं । यद्यपि ये एक दूसरे से विरोधी दिशाओं में हैं फिर भी सूर्योदय की अपेक्षा ऐसा कहा जाता है। निश्चय नय से आठ रुचक प्रदेशों की अपेक्षा दिशाओं का निश्चय किया जाता है, तब ये क्षेत्र भिन्न भिन्न दिशाओं में कहे जाएंगे। (ठाणांग सूत्र ५५५) (समवायांग ७) ५३७- वर्षधर पर्वत सात
ऊपर लिखे हुए सात क्षेत्रों का विभाग करने वाले सात वर्षधर पर्वत हैं- (१) चुल्लहिमवान् , (२) महाहिमवान् , (३) निषध, (४) नीलवान् , (५) रुक्मी, (६) शिखरी (७) मन्दर ।
(ठाणांग सूत्र ५५५) (समवायांग ७) ५३८-महानदियाँ सात
जम्बूद्वीप में सात महानदियाँ पूर्व की तरफ लवण समुद्र में गिरती हैं । (१) गंगा, (२) रोहिता, (३) हरि, (४) सीता, (५) नारी, (६) सुवर्णकूला और (७) रक्ता।
(ठाणांग सूत्र ५५१) ५३६- महानदियाँ सात - सात महानदियाँ पश्चिम की तरफ लवण समुद्र में गिरती हैं-(१) सिन्धु, (२) रोहितांशा, (३) हरिकान्ता, (४) सीतोदा, (५) नरकान्ता, (६) रूप्यकूला, (७) रक्तवती ।
(ठाणांग सूत्र ५५५) ५४०-स्वर सात
स्वर सात हैं । यद्यपि सचेतन और अचेतन पदार्थों में होने वाले स्वर भेद के कारण स्वरों की संख्या अगणित हो सकती है तथापि स्वरों के प्रकार भेद के कारण उनकी संख्या