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श्री सेठिया जैन अन्य माला
अधिक से अधिक दो हजार से लेकर नौ हजार तक । जिन्होंने पहिले यह कल्प ले रक्खा है ऐसे साधु दो करोड़ से लेकर नौ करोड़ तक होते हैं । यथालन्दिक दो प्रकार के होते हैं- गच्छप्रतिबद्ध और अप्रतिबद्ध । नहीं जाने हुए श्रुत का अर्थ समझने के लिए जो साधु गच्छ में रहते हैं उन्हें गच्छपतिबद्ध कहते हैं। दोनों के फिर दो दो भेद हैं-जिनकल्पियथालन्दिक और स्थविरकल्पियथालन्दिक । जो भविष्य में जिनकल्प अंगीकार करने वाले हैं वे जिनकल्पियथालन्दिक कहलाते हैं । जो बाद में स्थविरकल्प में आने वाले हों उन्हें स्थविरकल्पियथालन्दिक कहते हैं। स्थविरकल्पयथालन्दिक गच्छ में रहकर सब परिकर्म करता है तथा वस्त्र पात्र वाला होता है। भविष्य में जिनकल्पी होने वाले वस्त्र पात्र नहीं रखते तथा परिकर्म भी नहीं करते । वे शरीर की प्रतिचर्या, नहीं करते, आंख का मैल नहीं निकालते। रोग आने पर कष्ट सहते हैं, इलाज नहीं करवाते । यह यथालन्दिक की समाचारी है । विशेष विस्तार बृहत्कल्पादि में है।
(विशेषावश्यक भाष्य गाथा ७) ५२३- छद्मस्थ जानने के सात स्थान
सात बातों से यह जाना जा सकता है कि अमुक व्यक्ति छमस्थ है अर्थात् केवली नहीं है। (१) छद्मस्थ प्राणातिपात करने वाला होता है। उससे जानते
अजानते कभी न कभी हिंसा हो जाती है। चारित्र मोहनीय के , कारण चारित्र का वह पूर्ण पालन नहीं कर पाता।
(२) छद्मस्थसे कभी न कभी असत्य वचन बोला जा सकता है। :. (३) छयस्थ से अदत्तादान का सेवन भी हो जाता है।
यदि छिद्रपाणि हों तो पात्र तथा वस्त्र रखते भी हैं ।