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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव ये सात पदार्थ हैं। न्याय तथा मीमांसादर्शन में सृष्टिक्रम वैशेषिकों के समान ही है। . वेदान्तदर्शन में संसार ब्रह्म का विवर्त और माया का परिणाम है। संसार पारमार्थिक सत् नहीं है किन्तु व्यावहारिक सत् अर्थात् मिथ्या है।
जगत्कारण सांख्य और योग के मत से जगत् का कारण त्रिगुणात्मिका प्रकृति है। नैयायिक और वैशेषिकों के अनुसार कार्यजगत् के प्रति परमाणु, ईश्वर, ईश्वर का ज्ञान, ईश्वर की इच्छा, ईश्वर का प्रयत्न, दिशा, काल, अदृष्ट (धर्म और अधर्म), प्रागभाव और विघ्नसंसर्गाभाव कारण हैं।"
मीमांसकों के मत में जीव, अदृष्ट और परमाणु, जगत् के पति कारण हैं । वेदान्त के मत से ईश्वर अर्थात् अविद्या से युक्त ब्रह्म जगत् का उपादान कारण है और वही निमित्त कारण है ।
ईश्वर सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता।योगदर्शन के अनुसार क्लेश कर्मविपाक और उनके फल आदि से अस्पृष्ट पुरुषविशेष ही ईश्वर है । इनके मत में ईश्वर जगत्कर्ता नहीं है। वैशेषिक
और नैयायिक मत में ईश्वर जगत् का कर्ता है। उसमें आठ गुण होते हैं- संख्या (एकत्व), परिमाण (परममहत्) पृथक्त्व, संयोग, विभाग, बुद्धि, इच्छा और प्रयत्न ।
मीमांसक ईश्वर को नहीं मानते। वेदान्ती मायावच्छिन्न चैतन्य को ईश्वर मानते हैं।