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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
दर्शनों की परस्पर तुलना दर्शनों के पारस्परिक भेद और समानता को समझने के लिए नीचे कुछ बातें लिखी जाती हैं। दर्शनों का संक्षिप्त स्वरूप समझने में ये बातें विशेष सहायक सिद्ध होंगी। इनमें सभी दर्शन उनके विकासक्रम के अनुसार रक्खे गए हैं। पहले बताया जा चुका है कि दर्शनों के विकासक्रम की दो धाराएँ हैं । वेद को प्रमाण मान कर चलने वाली और युक्ति को मुख्यता देने वाली। पहले वैदिक परम्परा के अनुसार छहों दर्शनों का विचार किया जायगा।
प्रवर्तक सांख्य दर्शन पर कपिल ऋषि के बनाए हुए मूत्र हैं। वे ही इस के आदि प्रवर्तक माने जाते हैं। योग दर्शन महर्षि पतञ्जलि से शुरू हुआ है । वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद हैं। न्याय दर्शन के गौतम । मीमांसा के नैमिनि और वेदान्त के व्यास, किन्तु अद्वैतवेदान्त का प्रारम्भशङ्कराचार्य से ही होता है।
मुख्य प्रतिपाद्य सांख्य, योग, वैशेषिक, न्याय और वेदान्त ये पाँचों दर्शन ज्ञानवादी हैं अर्थात् ज्ञान को प्रधानता देते हैं । ज्ञान से ही मुक्ति मानते हैं । प्रकृति और पुरुष का भेदज्ञान ही सांख्यमत में मोक्ष है। इसको वे विवेकख्याति कहते हैं। योगमत भी ऐसा ही मानता है । वैशेषिक और न्याय १६ पदार्थों के तत्त्वज्ञान से मोक्ष मानते हैं । माया का आवरण हटने पर ब्रह्मतत्त्व का साक्षात्कार हो जाना वेदान्त दर्शन में मुक्ति है। इस प्रकार इन पाँचों दर्शनों में ज्ञान ही मोक्ष या मोक्ष का कारण है । इस