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श्री सेठिया जैन अन्य माला
अनन्त सुख रूप है किन्तु इसकी अनन्त शक्तियों को कों ने
आच्छादित कर रक्खा है । कर्मों के कारण ही आत्मा संसार में भटक रहा है। आत्मा के साथ कर्मों का सम्बन्ध अनादि है। पुराने कर्म छूटते जाते हैं और नए बँधते जाते हैं। नए कर्मों का सम्बन्ध होने के पाँच कारण हैं-मिथ्यात्व, अविरति प्रमाद, कषाय और योग । मिथ्यात्व का अर्थ है मिथ्यादर्शन जो सम्यग्दर्शन से उल्टा है । मिथ्यादर्शन दो प्रकार का है। (१) यथार्थ तत्त्वों में श्रद्धा न होना, (२) अयथार्थ वस्तु पर श्रद्धा करना । पहला मृढ दशा में होता है और दूसरा विचार दशा में विचार शक्ति का विकास होने के बाद भी मिथ्या अभिनिवेश के कारण जो व्यक्ति किसी एकान्त दृष्टि को पकड़ कर बैठ जाता है उसे दूसरी प्रकार का सम्यग्दर्शन है। उपदेशजन्य होने के कारण इसे अभिगृहीत कहा जाता है । जब तक विचार दशा जागृत नहीं होती, अनादिकालीन आवरण के कारण मूढ दशा होती है, उस समय न तत्त्वों पर श्रद्धा होती है न अतत्त्वों पर । अज्ञानावस्था होने के कारण ही उस समय तत्त्वों पर अश्रद्धान कहा जाता है । वह नैसर्गिक- उपदेशनिरपेक्ष होने के कारण अनभिगृहीत कहा जाता है । दृष्टि, मत, सम्पदाय
आदि का आग्रह तथा सभी ऐकान्तिक विचारधाराएँ अभिगृहीत मिथ्यादर्शन हैं। यह प्रायः मनुष्य जाति में ही होता है । दूसरा अनभिगृहीत मिथ्यात्व कीट पतङ्ग आदि असंज्ञी और मूर्छित चैतन्य वाली जातियों में होता है । अविकसित दशा में मनुष्यों के भी हो सकता है।
अविरति अर्थात् दोषों से विरत (अलग) न होना । जब तक प्रत्याख्यान नहीं होता तब तक मनुष्य अविरत रहता है । जव