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श्रो जेन सिद्धान्त बोल संग्रह
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करना चाहिए। प्रमत्तयोग का त्याग करना । मन, वचन
और काया की प्रवृत्ति में एकरूपता लाने का अभ्यास करना। सत्य होने पर भी बुरे भावों से न किसी बात को सोचना, न बोलना और न करना । क्रोध आदि का त्याग करना क्योंकि इनके अधीन होने पर मनुष्य सब कुछ असत्य बोलता है।
चोरी का स्वरूप 'अदत्तादानं स्तेयम्' बिना दिया हुआ लेना स्तेय अर्थात् चोरी है। जिस पर किसी दूसरे का अधिकार है वह वस्तु चाहे तृण सरीखी मूल्य रहित हो तो भी उसके मालिक की अनुमति के बिना चौर्यबुद्धि से लेना स्तेय है। __ अचौर्यव्रत को अङ्गीकार करने के लिए नीचे लिखी बातों का अभ्यास करना आवश्यक है- (१) किसी वस्तु के लिए ललचा जाने की वृत्ति दूर करना । (२) जब तक लालचीपना या लोभ दूर न हो तब तक प्रत्येक वस्तु को न्याय मार्ग से उपार्जन करने का प्रयत्न करना। (३) दूसरे की वस्तु को उसकी इजाजत के बिना लेने का विचार भी न करना ।
अब्रह्मचर्य का स्वरूप 'मैथुनमब्रह्म'। मैथुन प्रवृत्ति को अब्रह्मचर्य कहते हैं। अर्थात कामविकार से प्रवृत्त स्त्री और पुरुष की चेष्टाओं को अब्रह्म कहते हैं । यहाँ स्त्री और पुरुष उपलक्षण हैं । कामरागजनित कोई भी चेष्टा चाहे वह प्राकृतिक हो या अप्राकृतिक उसे अब्रह्मचर्य कहा जाता है। शास्त्रों में ब्रह्मचर्य पर बहुत जोर दिया गया है। उसके पालन के लिए विविध अङ्ग बताए गए हैं। जो