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दप भागों से कम में समाप्त होना कठिन जान पड़ता है। पाठकों की मौन शुभकामना महापुरुषों का आशीर्वाद तथा क्षयोपशम का बल अगर मेरे साथ रहा तो सम्भव है, मैं अपनी इस अभिलाषा को पूर्ण कर सकूँ । वृलन प्रेस बीकानेर (राजपूताना)
निवेदक:अक्षय तृतीया सं० १६६८
भैरोंदान सेठिया ता. २६-४-१९४१ ई.
आभार प्रदर्शन जैन धर्म दिवाकर पंडितप्रवर उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज ने पुस्तक का आद्योपान्त अवलोकन करके आवश्यक संशोधन किया है। परमप्रतापी पूज्य श्री हुक्मीचंद्रजी महाराज के पश्वर श्री श्री १००८ आचार्यप्रवर पूज्य श्री जवाहिरलालजी महाराज के सुशिष्य पं० मुनि श्री पन्नालालजी महाराज ने भी परिश्रम पूर्वक पूरा समय देकर पुस्तक का ध्यान पूर्वक निरीक्षण किया है। बहुत से नए बोल तथा कई बोलों के लिए सूत्रों के प्रमाण भी उपरोक्त मुनिवरों की कृपा से ही प्राप्त हुए हैं। उक्त सम्प्रदाय के मुनिश्री बड़े चांदमलजी महाराज के सुशिष्य पं० मुनिश्री घासीलालजी महाराज ने भी समय समय पर अपना सत्परामर्श देकर पूर्ण सहयोग दिया है । पुस्तक की प्रमाणिकता का बहुत बड़ा धेय उपरोक्त मुनिवरों को ही है । इन महापुरुषों के उपकार के लिए मैं उनका सदा आभारी रहूंगा।
चिरंजीव जेठमल सेठिया ने पुस्तक को बड़े ध्यान से प्रायोपान्त देखा है । समय समय पर अपना गम्भीर परामर्श भी दिया है । उनके परिश्रम और लगन ने पुस्तक को उपयोगी तथा सुन्दर बनाने में बहुत बड़ा सहयोग दिया है ।
इसके अतिरिक्त जिन २ सजनों ने पुस्तक को उपयोगी बनाने के लिए समय २ पर अपनी शुभ सम्मतियें एवं सत्परामर्श दिया है तथा पुस्तक के संकलन और प्रूफ संशोधन में सहायता दी है उन सब का मैं आभार मानता हूँ।
निवेदक
भैरोंदान सेठिया बीकानेर