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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
दवाई दे देता है किन्तु रोगी के शरीर पर उस दवाई का उल्टा असर हुआ । मरने के बदले वह रोगमुक्त हो गया। ऐसी हालत में रोगी को लाभ पहुँचने पर भी डाक्टर को हिंसा का दोष लगेगा क्योंकि उसके परिणाम बुरे हैं।
'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।' अर्थात् कर्मबन्ध और कर्मों से छुटकारा दोनों का कारण मन ही है। हिंसा का मुख्य आधार भी मन ही है। मन से दूसरे का या अपना बुरा सोचना हिंसा है। जो मनुष्य अपने वास्तविक हित को नहीं जानता और सांसारिक भोगों में ही अपना हित मानता है वह आत्महिंसा कर रहा है। आत्मा को अधःपतन की ओर लेजाना या
आत्मवञ्चना (अपनी आत्मा को ठगना) ही आत्महिंसा है। ___पातञ्जल योगसूत्र के व्यास भाष्य में आया है- 'अहिंसा भूतानामनभिद्रोहः'।भूत अर्थात् प्राणियों के साथ द्रोह न करना अहिंसा है । द्रोह का अर्थ है ईर्ष्या-द्वेष । द्रोह का न होना ही अहिंसा है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि हिंसा का अर्थ है द्वेष ।
अहिंसा और कायरता किसी किसी का कहना है, जैनियों की अहिंसा कायरता है। किन्तु विचार करने से यह बात गलत साबित हो जाती है । वीरता का अर्थ अगर दसरे से द्वेष करना हो तो कहा जा सकता है कि अहिंसा वीरता नहीं है । जो व्यक्ति युद्ध में लाखों आदमियों की जान लेले उसे भी वीर नहीं कहा जा सकता ।अगर वह आदमी भयङ्कर अस्त्र शस्त्र इकडे करके आत्मरक्षा तथा परसंहार के लिए पूरी तरह तैयार हो कर लाखों अस्त्र शस्त्र हीन दीन दुखियों की जान लेले तो उसे वीर कहना