________________
१८६
श्री सेठिया जैन प्रन्थ माला
(४) साधर्मिक अवग्रहयाचन-अपने से पहले किसी समान धर्म वाले ने कोई स्थान प्राप्त कर रक्खा हो, उसी स्थान को उपयोग करने का अवसर आवे तो साधर्मिक से मांग लेना साधर्मिक अवग्रहयाचन है।
(५) अनुज्ञापितपानभोजन- विधिपूर्वक अन्न पान आदि लाने के बाद गुरु को दिखाना तथा उनकी आज्ञा प्राप्त होने के बाद उपयोग में लाना अनुज्ञापितपानभोजन है।
चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत की पाँच भावनाएँ(१) स्त्रीपशुपंडकसेवित शयनासनवर्जन- ब्रह्मचारी पुरुष या स्त्री को विजातीय (दूसरे लिङ्ग वाले) व्यक्ति द्वारा काम में लाए हुए शय्या तथा आसन का त्याग करना चाहिए।
(२) स्त्रीकथावर्जन- ब्रह्मचारी को रागपूर्वक कामवर्द्धक बातें नहीं करनी चाहिए।
(३) मनोहर इन्द्रियालोकवर्जन- ब्रह्मचारी को अपने से विजातीय व्यक्ति के कामोद्दीपक अङ्गों को न देखना चाहिए।
(४) स्मरणवर्जन-- ब्रह्मचर्य स्वीकार करने से पहले भोगे हुए कामभोगों को स्मरण न करना चाहिए ।
(५) प्रणीतरसभोजनवर्जन-कामोद्दीपक,रसीले और गरिष्ठ भोजन तथा ऐसी ही पेय वस्तुओं का त्याग करना चाहिए ।
पाँचवें अपरिग्रह महाव्रत की पाँच भावनाएँ
(१) मनोज्ञामनोज्ञ स्पर्शसमभाव- अच्छे या बुरे लगने के कारण राग या द्वेष पैदा करने वाले स्पर्श पर समभाव रखना। इसी प्रकार सभी तरह के रस, गन्ध, रूप और शब्द पर समभाव रखना रूप अपरिग्रह व्रत की चार और भावनाएँ हैं।
जैन दर्शन में त्याग को प्रधानता दी गई है । इसी लिए