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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
सम्यक्चारित्र कर्मबन्ध के वास्तविक कारणों को जान कर नवीन कर्मों के आगमन को रोकना तथा सश्चित कर्मों के क्षय के लिए प्रयत्न करना सम्यक्चारित्र है । चारित्र के दो भेद हैं- सर्वविरति चारित्र और देशविरति चारित्र । सर्वविरति चारित्र साधुओं के लिए है और देशविरति चारित्र श्रावकों के लिए।
हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का मन, वचन और काया से सर्वथा त्याग कर देना सर्वविरति चारित्र है। सर्वथा त्याग का सामर्थ्य न होने पर स्थूल हिंसा आदि का त्याग करना देशविरति चारित्र है।
व्रतों में मुख्य अहिंसा ही है। झूठ, चोरी आदि का त्याग इसी की रक्षा के लिए किया जाता है। अहिंसा का स्वरूप विस्तृत रूप से आगे बताया जायगा।
व्रतों की रक्षा के लिए व्रतधारी को उन सब नियमों का पालन करना चाहिए जो व्रतरक्षा में सहायक हों तथा उन बातों को छोड़ देना चाहिए जिनसे व्रत में दोष लगने की सम्भावना हो । व्रतों की स्थिरता के लिए प्राचाराग, समवायाङ्ग और आवश्यक सूत्र में प्रत्येक व्रत की पाँच पाँच भावनाएँ बताई हैं
अहिंसाव्रत (१) ईर्यासमिति- यतनापूर्वक गति करना जिससे स्व या पर को क्लेश न हो । (२) मनोगुप्ति- मन को अशुभ ध्यान से हटाना और शुभ ध्यान में लगाना । (३) एषणासमिति- किसी वस्तु की गवेषणा, ग्रहण और उपभोग तीनों में उपयोग रखना जिससे कोई दोष न आने पावे, एषणासमिति है। (४) आदान