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श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला
हैं । अपेक्षावाद को लेकर ही जैन दर्शन में अस्ति, नास्ति वगैरह सात भङ्ग माने गए हैं। इनका स्वरूप विस्तार पूर्वक सातवें बोल संग्रह के बोल नं० ५६३ में दिया गया है ।
ज्ञेय
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ज्ञान के बाद संक्षेप से ज्ञेय पदार्थों का निरूपण किया जाना है । जैन दर्शन में छ: द्रव्य माने गए हैं। इनका विस्तृत वर्णन बोल नं० ४२४ में याचुका है । मुमुक्षु के लिए ज्ञातव्य नौ तत्त्व हैं । इनका वर्णन भी नवें बोल संग्रह में दिया जायगा । वस्तु का लक्षण उत्पादव्ययधीव्ययुक्तं सत् ।
जिसमें उत्पाद, व्यय और धौव्य तीनों हों उसे सत् कहते हैं । वेदान्ती सत् अर्थात् ब्रह्म रूप पदार्थ को एकान्त ध्रुव अर्थात् नित्य मानते हैं । बौद्ध वस्तु को निरन्वय क्षणिक ( उत्पाद विनाश शील) मानते हैं। सांख्य दर्शन चेतन रूप सत् को कूटस्थ नित्य और प्रकृतितत्त्वरूप सत् को परिणामिनित्य ( नित्यानित्य ) मानता है । न्याय दर्शन परमाणु, आत्मा, काल वगैरह कुछ पदार्थों को नित्य और घटपटादि को अनित्य मानता है I जैन दर्शन का मानना है कि कोई सत् अर्थात् वस्तु एकान्त नित्य या अनित्य नहीं है । चेतन अथवा जड, मूर्त्त अथवा अमूर्त सूक्ष्म अथवा वादर सत् कहलाने वाली सभी वस्तुएँ उत्पाद व्यय और धौव्य तीनों रूप वाली हैं।
प्रत्येक वस्तु में दो अंश होते हैं। एक अंश तीनों कालों में स्थिर रहता है और दूसरा अंश हमेशा बदलता रहता है ।