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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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है । निर्जीव पत्थर को अज्ञानी भी नहीं कहा जा सकता। इसलिए सामान्य ज्ञान से सभी जीव परिचित हैं। किन्तु सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञान का भेद समझना जरूरी है। सम्यग्दर्शन होने के बाद सामान्यज्ञान ही सम्यग्ज्ञान हो जाता है। सम्यग्ज्ञान और असम्यग्ज्ञान का यही भेद है कि पहला सम्यग्दर्शन सहित है और दूसरा उससे रहित ।
शङ्का- सम्यक्त्व का ऐसा क्या प्रभाव है कि उसके बिना ज्ञान कितना ही प्रामाणिक और अभ्रान्त हो तो भी वह मिथ्या गिना जाता है और सम्यग्दर्शन होने पर ज्ञान कैसा ही अस्पष्ट भ्रमात्मक याथोड़ा हो वह सम्यग्ज्ञान माना जाता है। मिथ्याज्ञान सम्यग्दर्शन के होते ही सम्यग्ज्ञान क्यों मान लिया जाता है ? ___उत्तर- 'सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इस सूत्र में मोक्ष का मार्ग बताया गया है। मोक्ष का दूसरा अर्थ है आत्मा की शक्तियों का पूर्ण विकास । अर्थात् आत्मशक्ति के बाधकों को नष्ट करके पूर्ण विकास कर लेना । इसलिए यहाँसम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञान का विवेक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से करना चाहिए । प्रमाणशास्त्र की तरह विषय की दृष्टि से यहाँ सम्यक और मिथ्या का निर्णय नहीं होता । न्याय शास्त्र में जिस ज्ञान का विषय सत्य है उसे सम्यग्ज्ञान और जिस का विषय असत्य है उसे मिथ्याज्ञान कहा जाता है। अध्यात्म शास्त्र में यह विभाग गौण है । यहाँ सम्यग्ज्ञान से वही ज्ञान लिया जाता है जिससे आत्मा का विकास हो और मिथ्याज्ञान से वह ज्ञान लिया जाता है जिससे आत्मा का पतन हो या संसार की वृद्धि हो। यह सम्भव है कि सामग्री कम होने के कारण सम्यक्त्वी जीव को किसी विषय में संशय हो जाय, भ्रम होजाय या उसका