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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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गए। संसार के महान् रहस्य को साधारण मानव बुद्धि से जानने की चेष्टा करने लगे। जहाँ बुद्धि की पहुँच न हुई उस तत्त्व को ही मिथ्या समझा जाने लगा । धीरे धीरे युक्तिवाद उन्हें शून्यवाद पर ले आया । इसी विचार तारतम्य के अनुसार उनके चार भेद हो गए- वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार
और माध्यमिक । ___ मानव विकास के इतिहास में एक समय ऐसा आया जब लोग पारलौकिक बातों की ओर बहुत झुक गए । पारिवारिक, सामाजिक, और राजनीतिक जीवन की ओर उपेक्षा होने लगी। उसी की प्रतिक्रिया के रूप में बार्हस्पत्य दर्शन पैदा हुआ।
इस प्रकार वेद को प्रमाण न मानने वाले दर्शनों के भी छः भेद हो गए। यहाँ पर सभी मान्यताओं को संक्षेप में बताया जायगा।
बौद्ध दर्शन जैन तीर्थङ्कर महावीर स्वामी के समय में अर्थात् ई. पू. छठी या पाँचवीं सदी में कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के पुत्र गौतम सिद्धार्थ ने बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु इत्यादि के दृश्य देख कर संसार से विरक्ति होने पर छः वर्ष तप करने पर भी अभिलषित वस्तु की प्राप्ति न होने पर गया में बोध प्राप्त किया। बुद्ध नाम से प्रसिद्ध होकर उन्होंने पहिले बनारस के पास सारनाथ और फिर उत्तर हिन्दुस्तान में घूम घूम कर ३५ वर्ष तक उपदेश दिया और अपने धर्म का चक्र चलाया । इन उपदेशों के आधार पर उनके शिष्यों ने और शिष्यों के उत्तराधिकारियों ने बौद्ध सिद्धान्त और दर्शन का रूप निश्चित किया। बौद्ध साहित्य तीन पिटकों में है-(१) सुत्त पिटक, जिसमें