________________
१०२
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
समर्थ नहीं है। (६) लोक से बाहर जाने में कोई समर्थ नहीं है ।
(ठाणांग ६ सत्र ४७६ ) ४९१-- नकारे के छः चिह
बोल कर नकारे का उत्तर न देने पर भी छः प्रकार की चेष्टाओं से नकार का भाव जाना जाता है। भिउडी अधालोयण उच्चादिट्ठीय परमुहं वयणं।
मोणं कालविलम्बो नक्कारोछविहो भणियो। (१) भौंह चढ़ाना यानी ललाट में सल चढ़ाना । (२) नीचे की ओर देखना। (३) ऊपर की ओर देखना। (४) दूसरे की ओर मुंह करके बातचीत करना। (५) मौन रहना। (६) काल बिताना ( विलम्ब करना)
(उत्तराध्ययन कथा १८ में) ४९२--प्राकृत भाषा के छः भेद (१) महाराष्ट्री (२) शौरसेनी (३) मागधी (४) पैशाची (५) चूलिकापैशाची (६) अपभ्रंश ।
(प्राकृत व्याकरण) (षड्भाषा चन्द्रिका । ४९३-विवाद के छः प्रकार . तत्त्वनिर्णय या जीतने की इच्छा से वादी और प्रतिवादी का
आपस में शङ्का समाधान करना विवाद है। इसके छः भेद हैं(१) अवसर के अनुसार पोछे हट कर अर्थात् विलम्ब करके विवाद करना। (२) मध्यस्थ को अपने अनुकूल बनाकर अथवा प्रतिवादी के