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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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(१) सिद्ध (२) सूक्ष्म और बादर निगोद के जीव (अनन्तकायिक) (३) वनस्पति (प्रत्येक और अनन्त वनस्पति जीव) (४) काल (तीनों काल के समय) (५) पुद्गल परमाणु (६) अलोकाकाश । ये छहों राशियां अनन्त हैं।
. (अनुयोग द्वार सूत्र) (प्रवचनसारोद्धार गाथा १४०४) ४८९-छद्मस्थ छः बातों को नहीं देख सकता
चार घाती कर्मों का सर्वथा क्षय करके जो मनुष्य सर्वज्ञ और सर्वदर्शी नहीं हुआ है, उसे छगस्थ कहते हैं । यहाँ पर छद्मस्थ पद से विशेष अवधि या उत्कृष्ट ज्ञान से रहित व्यक्ति लिया जाता है। ऐसाव्यक्ति नीचे लिखी छःबातों को नहीं देख सकता
(१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय (३) आकाशास्तिकाय (४) शरीररहित जीव (५) परमाणुपुद्गल (६) शब्दवर्गणा के पुद्गल नोट- परमावधिज्ञानी परमाणु और भाषावर्गणा के पुद्गलों को देख सकता है,
इसीलिए यहां छप्रस्थ शब्द से विशेष अवधि या उत्कृष्ट ज्ञान से शून्य
व्यक्ति लिया गया है। (ठाणांग ६ सूत्र ४७८) । ४९०-छः बोल करने में कोई समर्थ नहीं है (१) जीव को अजीव बनाने में कोई समर्थ नहीं है। (२) अजीव को जीव करने में कोई समर्थ नहीं है। (३) एक समय में यानी एक साथ दो सत्य और असत्य भाषा बोलने में कोई समर्थ नहीं है। (४) किए हुए कर्मों का फल अपनी इच्छा के अनुसार भोगने में कोई स्वतन्त्र नहीं है । अर्थात् कर्मों का फल भोग जीव की इच्छानुसार नहीं होता। (५) परमाणु पुद्गल को छेदन भेदन करने एवं जलाने में कोई