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श्री सेठिया जैन प्रन्धमाला
अकस्मात मुख में चला जाना। (३) प्रच्छन्नकाल- बादल, आँधी या पहाड़ वगैरह के बीच में आजाने पर सूर्य के न दिखाई देने से अधूरे समय में पोरिसी को पूरा समझ कर पार लेना ।अगर भोजन करते समय यह मालूम पड़ जाय कि पोरिसी अभी पूरी नहीं हुई है तो उसी समय भोजन करना छोड़ देना चाहिये । फिर पोरिसी पूरी आने पर भोजन करना चाहिये । अगर पोरिसी अधूरी जानकर भी भोजन करता रहे तो प्रत्याख्यान भङ्ग का दोष लगता है। (४) दिशामोह- पूर्व को पश्चिम समझ कर पोरिसी न आने पर भी अशनादि सेवन करना । अशनादि करते समय अगर वीच में दिशा का भ्रम दूर हो जाय तो उसी समय आहारादि छोड़ देना चाहिए । जानकर भी अशनादि सेवन करने से व्रत भङ्ग का दोष लगता है। (५) साधुवचन- 'पोरिसी आ गई' इस प्रकार किसी प्राप्त पुरुष के कहने पर पोरिसी पार लेना । इसमें भी किसी के कहने या और किसी कारण से बाद में यह पता लग जाय कि अभी पोरिसी नहीं आई है तो आहारादि छोड़ देना चाहिए। नहीं तो व्रत का भङ्ग हो जाता है। (६) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार- तीव्र रोग की उपशान्ति के लिए
औषध आदि ग्रहण करने के निमित्त निर्धारित समय के पहिले ही पचक्रवाण पार लेना
(हरिभद्रीय मा०६ प्रत्याख्यानाध्ययन) (प्रवचनसारोद्धार ४ प्रत्याख्यान द्वार.) ४८४- साधु द्वारा आहार करने के छ: कारण
साधु को धर्मध्यान, शास्त्राध्ययन और संयम की रक्षा के लिए ही आहार करना चाहिए। विशेष कारण के बिना आहार करने