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जैन साहित्य रूप बगीचो नव पल्लवित बनी जाय तेमां संदेह नथी। श्री सेठियाजी ने तेमना आवा जैन तत्व ज्ञान प्रत्येना प्रेम बदल धन्यवाद घटे छे । ____ा ग्रन्थ मां आत्मा,समकित, दंड,जम्बूद्वीप,प्रदेश, परमाणु,त्रस,स्थावर,पांच ज्ञान, श्रुतचारित्र धर्म, इन्द्रियाँ, कर्म, स्थिति, कार्य, कारण, जन्म, मरण, प्रत्याख्यान, गुणस्थान, श्रेणी, लोग, वेद, अागम,अाराधना, वैराग्य, कथा, शल्य, ऋद्धि, पल्योपम, गति, कषाय, मेघ, वादी, पुरुषार्थ, दर्शन वगेरे संख्या बंध विषयो भेद-उपभेदों अने प्रकारो थी सविस्तर वर्णववामां आव्या छै। श्रा ग्रन्य पाठशालाओं मां ने अभ्यासिनों मां पाठ्यपुस्तक तरीके खूबज उपयोगी नीवड़ी शके तेम छ ।
श्रीसाधुमार्गी जैन पूज्यश्री हुक्मीचन्दजी महाराज की सम्प्रदाय का हितेच्छु श्रावक मण्डल रतलाम का
निवेदनपत्र ( मिति पौष शुक्ला १५. सं० १६६७)
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, प्रथम भाग। संग्रहकर्ताश्रीमान सेठ भैरोंदानजी सेठिया बीकानेर । प्रकाशकश्रीसेठिया जैन पारमार्थिक संस्था बीकानेर । न्यो०१)
पुस्तक श्रीमान् सेठ सा० की ज्ञान जिज्ञासा का प्रमाण स्वरूप है । पुस्तक के अन्दर वर्णित सैद्धान्तिक योलों की संग्रहशैली एवं उनका विवरण बहुत सुन्दर रीति से दिया गया है। भाषा भी सरल एवं आकर्षक है। पुस्तक के पठन मनन से साधारण मनुष्य भी जैन तत्त्वों का बोध सुगमता पूर्वक कर सकता है । पुस्तक का