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श्रो सेठिया जैन ग्रन्थमाला
(४) अवगाहना नामनिधत्तायु–यहाँ अवगाहना का आशय औदारिक शरीर है जिसे अवगाह करके जीव रहता है। औदारिक शरीरादि नाम कर्म रूप अवगाहना के साथ निषेक को प्राप्त आयु अवगाहना नामनिधत्तायु है। (५) प्रदेश नामनिधत्तायु-प्रदेश नाम के साथ निषेक प्राप्त आयु प्रदेश नामनिधत्तायु है । प्रदेश नाम की व्याख्या इस . प्रकार है
जिस भव में कर्मों का प्रदेशोदय होता है वह प्रदेश नाम है। अथवा परिमित परिमाण वाले आयु कर्म दलिकों का आत्म प्रदेश के साथ सम्बन्ध होना प्रदेश नाम है। अथवा आयु कर्म द्रव्य का प्रदेश रूप परिणाम प्रदेश नाम है। अथवा प्रदेश रूप गति, जाति और अवगाहना नाम कर्म प्रदेश नाम है। (६) अनुभाग नामनिधत्तायु- आयु द्रव्य का विपाक रूप परिणाम अथवा अनुभाग रूप नाम कर्म अनुभागनाम है। अनुभाग नाम के साथ निषेक को प्राप्त आयु अनुभाग नामनिधत्तायु है।
जाति आदि नाम कर्म के विशेष से आयु के भेद बताने का यही आशय है कि आयु कर्म प्रधान है । यही कारण है कि नरकादि आयु का उदय होने पर ही जाति आदि नाम कर्म का उदय होता है।
यहाँ भेद तो आयु के दिये हैं पर शास्त्रकार ने आयु बन्ध के छः भेद लिखे हैं। इससे शास्त्रकार यह बताना चाहते हैं कि आयु बन्ध से अभिन्न है। अथवा बन्ध प्राप्त आयु ही आयु शब्द का वाच्य है।
(भगवती शतक ६ उद्देशा =) (ठाणांग ६ सूत्र ५३६)