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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वाली हड्डी का चारों ओर से वेष्टन हो और जिसमें इन तीनों हड्डियों को भेदने वाली वज्र नामक हड्डी की कील हो उसे वज्र ऋषभ नाराच संहनन कहते हैं। (२) ऋषभ नाराच संहनन- जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई दो हड्डियों पर तीसरी पट्ट की आकृति वाली हड्डी का चारों ओर से वेष्टन हो पर तीनों हड्डियों को भेदने वाली वज्र नामक हड्डी की कील न हो उसे ऋषभ नाराच संहनन कहते हैं। (३) नाराच संहनन- जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई हड्डियाँ हों पर इनके चारों तरफ वेष्टन पट्ट और वज्र नामक कील न हो उसे नाराच संहनन कहते हैं। (४) अर्धनाराच संहनन-- जिस संहनन में एक ओर तो मर्कट बन्ध हो और दूसरी ओर कील हो उसे अर्थ नाराच संहनन कहते हैं। (५) कीलिका संहनन- जिस संहनन में हड्डियाँ केवल कील से जुड़ी हुई हों उसे कीलिका संहनन कहते हैं। (६) सेवार्तक संहनन- जिस संहनन में हड्डियाँ पर्यन्तभाग में एक दूसरे को स्पर्श करती हुई रहती हैं तथा सदा चिकने पदार्थों के प्रयोग एवं तैलादि की मालिश की अपेक्षा रखती हैं उसे सेवार्तक संहनन कहते हैं। (पन्नवणा २३ कर्मप्रकृति पद) (ठाणांग ६ सूत्र ४६४) (कर्मग्रन्थ भाग १ गाथा ३६) (प्रवचनसारोद्धार गाथा १२६८) ४७१-- लेश्या छः जिससे कर्मों का आत्मा के साथ सम्बन्ध हो उसे लेश्या कहते हैं । द्रव्य और भाव के भेद से लेश्या दो प्रकार की है।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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