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________________ श्री संठिया जैन अन्धमाला ४१-सामान्यः-वस्तु के जिस धर्म के कारण बहुत से पदार्थ एक सरीखे मालूम पड़ें तथा एक ही शब्द से कहे जाय उसे सामान्य कहते हैं। विशेषः-मजातीय और विजातीय पदार्थों से भिन्नता का बोध ___ कराने वाला धर्म विशेष कहा जाता है । जैसे:-मनुष्य, नरक, तियश्च आदि सभी जीव रूप से एक से हैं और एक ही जीव शब्द से कहे जा सकते हैं। इसलिए जीवत्व सामान्य है । यही जीवत्व जीव द्रव्य को दूसरे द्रव्यों से भिन्न करता है। इसलिए विशेष भी है । घटत्व सभी घटों में और गोत्व सभी गौत्रों में एकता का बोध कगना है । इसलिए ये दोनों मामान्य हैं । “यह घट" इममें एतद् घटत्व सजातीय दुसरे घटों से और विजातीय पटादि पदों से भेद कराता है । इसलिए यह विशेष है। इसी तरह "चितकवर्ग" गाय में चितकबरापन मजातीय दुमरी लाल, पीली आदि गौओं से और विजातीय अश्यादि स भेद कराता है। इमलिए यह विशेष है। वास्तव में सभी धर्म मामान्य और विशेष दोनों कहे जा सकते हैं । अपने से अधिक पदार्थों में रहने वाले धर्म की अपेक्षा प्रत्येक धर्म विशेष है । न्यून वस्तुओं में रहने वाले की अपेक्षा मामान्य है । घटत्व पुद्गलत्व की अपेक्षा विशेष है और कृष्ण घटत्व की अपेक्षा सामान्य है। (म्याद्वादमञ्जरी कारिका ४) (प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार परिच्छेद ५)
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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