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श्री सेटिया जैन ग्रन्थमाला २१-ऊनोदरी की व्याख्या और भेदः---भोजन आदि के परि
माण और क्रोध आदि के आवेग को कम करना ऊनोदरी है।
ऊनोदरी के दो भेद (१) द्रव्य ऊनोदरी (२) भाव ऊनोदरी । द्रव्य ऊनोदरी:-भंड उपकरण और आहार पानी का शास्त्र
में जो परिमाण बतलाया गया है उसमें कमी करना द्रव्य ऊनोदरी है। अतिमग्म और पौष्टिक आहार उनोदगे में वर्जनीय है।
(भगवती शतक ७ उद्देशा १) भाव ऊनोदरी:-क्रोध, मान, माया और लोभ में कमी करना,
अल्प शब्द बोलना, क्रोध के वश होकर भाषण न करना तथा हृदय में रहे हुए क्रोध को शान्त करना आदि भाव ऊनोदरी है।
(भगवती शतक २५ उद्देशा ७) २२-प्रवचन माता:-पांच ममिति, तीन गुप्ति को प्रवचन माता
कहते हैं । द्वादशांग रूप वाणी ( प्रवचन ) शास्त्र की जन्म दात्री होने से माता के समान यह माना है। इन्हीं आठ प्रवचन माता के अन्दर सारे शास्त्र समा जाते हैं ।
प्रवचन माता के दो भेद-(१) समिति ( २ ) गुप्ति समितिः-प्राणातिपात से निवृत्त होने के लिए यतना पूर्वक मन,
वचन, काया की प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। गुमिः-मन, वचन, काया के शुभ और अशुभ व्यापार को रोकना या आते हुए नवीन कर्मों को रोकना गुप्ति है ।
(उत्तराध्ययन अध्ययन २४)