________________ 443 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह दर्शन के चार भेदः (1) चक्षु दर्शन (2) अचक्षु दर्शन / (3) अवधि दर्शन (4) केवल दर्शन। नोट:-चक्षु दर्शन आदि का स्वरूप, बोल नम्बर 166 चे में दिया जा चुका है। निद्रा के पाँच भेद ये हैं:(१) निद्रा (2) निद्रा निद्रा / (5) स्त्यानगृद्धि / (1) निद्राः--जिस निद्रा में सोने वाला सुखपूर्वक धीमी धीमी आवाज से जग जाता है वह निद्रा है / मुश्किल से ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने वा हाथ से हिलाने पर जगता है / वह निद्रा निद्रा है। (3) प्रचलाः-खड़े हुए या बैठे हुए व्यक्ति को जो नींद आती है वह प्रचला है। (4) प्रचला प्रचला:-चलते चलते जो नींद आती है वह प्रचला प्रचला है। (5) स्त्यानगृद्धिः-जिस निद्रा में जीव दिन अथवा रात में सोचा हुआ काम निद्रितावस्था में कर डालता है वह स्त्यानगृद्धि है। वज्र ऋषभ नाराच संहनन वाले जीव को जब स्त्यानगृद्धि निद्रा आती है तब उसमें वासुदेव का आधा बल