________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ४१:-पांच अनन्तक: (1) एकतः अनन्तक (2) द्विधा अनन्तक / (3) देश विस्तार अनन्तक (4) सर्व विस्तार अनन्तक / (5) शाखत अनन्तक / (1) एकतः अनन्तक:-एक अंश से अर्थात् लम्बाई की अपेक्षा जो अनन्तक है वह एकतः अनन्तक है / जैसे: एक श्रेणी वाला क्षेत्र / (2) द्विधा अनन्तकः-दो प्रकार से अर्थात् लम्बाई और चौड़ाई की अपेक्षा जो अनन्तक है / वह द्विधा अनन्तक कहलाता है। जैसे:-प्रतर क्षेत्र। (3) देश विस्तार अनन्तक:-रुचक प्रदेशों की अपेक्षा पूर्व पश्चिम आदि दिशा रूप जो क्षेत्र का एक देश है और उसका जो विस्तार है उसके प्रदेशों की अपेक्षा जो अन न्तता है / वह देश विस्तार अनन्तक है। (4) सर्व विस्तार अनन्तक: सारे आकाश क्षेत्र का जो विस्तार है उसके प्रदेशों की अनन्तता सर्व विस्तार अनन्तक है। (5) शाश्वत अनन्तक:--अनादि अनन्त स्थिति वाले जीवादि द्रव्य शाश्वत अनन्तक कहलाते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 462) ४१६--पाँच निद्रा: दर्शनावरणीय कर्म के नव भेद हैं:चार दर्शन और पांच निद्रा।