________________ 365 श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह इन पाँच ज्ञानावरणीय कर्मों में केवल ज्ञानावरणीय सर्व घाती है और शेष चार कर्म देशघाती हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 464) (कर्मग्रन्थ प्रथम भाग) ३७६-परोक्ष प्रमाण के पांच भेदः (1) स्मृति / (2) प्रत्यभिज्ञान / (3) तर्क / (4) अनुमान / (5) आगम। (1) स्मृतिः-पहले जाने हुए पदार्थ को याद करना स्मृति है। (2) प्रत्यभिज्ञानः-स्मृति और प्रत्यक्ष के विषयभूत पदार्थ में जोड़ रूप ज्ञान को प्रत्यभिज्ञान कहते हैं / जैसे:-यह वही मनुष्य है जिसे कल देखा था। (3) तर्क:-अविनाभाव सम्बन्ध रूप व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं / साधन (हतु) के होने पर साध्य का होना, और साध्य के न होने पर साधन का भी न होना अविनाभाव मम्बन्ध है / जैसे:-जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अनि होती है और जहाँ अग्नि नहीं होती वहाँ धूम भी नहीं होता। (4) अनुमानः-साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते है / जैसे:-धूम को देख कर अमि का ज्ञान / / __ जिसे हम सिद्ध करना चाहते हैं वह साध्य है और जिस के द्वारा साध्य सिद्ध किया जाता है वह साधन है / साधन, साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से रहता है / उसके होने पर साध्य अवश्य होता है और साध्य के अभाव में