________________ 364 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वरणीय कर्म से ज्ञान के ढक जाने पर भी जीव में इतना ज्ञानांश तो रहता ही है कि वह जड़ पदार्थ से पृथक समझा जा सके। ज्ञानावरणीय कर्म के पांच भेद(१) मति ज्ञानावरणीय / (2) श्रुत ज्ञानावरणीय / (3) अवधि ज्ञानावरणीय / (4) मनः पर्यय ज्ञानावरणीय / (5) केवल ज्ञानावरणीय / (1) मति ज्ञानावरणीयः-पति ज्ञान के एक अपेक्षा से तीन सौ चालीस भेद होते हैं / इन सब ज्ञान के भेदों का आवरण करने वाले कर्मों को मति ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं / (2) श्रुत ज्ञानावरणीयः-चौदह अथवा बीस भेद वाले श्रुतज्ञान का आवारण करने वाले कर्मों को श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं। (3) अवधि ज्ञानावरणीयः-भव प्रत्यय और गुण प्रत्यय तथा अनुगामी, अननुगामी आदि भेद वाले अवधिज्ञान के आवारक कर्मों को अवधि ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं। (4) मनः पर्यय ज्ञानावरणीयः-ऋजुमति और विपुलमति भेद वाले मनःपर्यय ज्ञान का आच्छादन करने वाले कर्मों को मनःपर्यय ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं। (5) केवल ज्ञानावरणीयः केवल ज्ञान का आवरण करने वाले कर्मों को केवल ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं।