________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ३६०-महानिर्जरा और महापर्यवसान के पांच बोल (1) आचार्य / (2) उपाध्याय (सूत्रदाता)। (3) स्थविर / (4) तपस्वी। (5) ग्लान साधु की ग्लानि रहित बहुमान पूर्वक वैयाकृत्य करता हुआ श्रमण निर्गुथ महा निर्जरा वाला होता है और पुनः उत्पन्न न होने से महापर्यवसान अर्थात् आत्यन्तिक अन्त वाला होता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 367) ३६१-महानिर्जरा और महापर्यवसान के पाँच बोलः (1) नवदीक्षित साधु / (2) कुल / (3) गण / (4) संघ / (5) साधर्मिक की ग्लानि रहित बहुमान पूर्वक वैयावृत्त्य करने वाला साधु महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है। (1) थोड़े समय की दीक्षा पर्याय वाले साधु को नव दीक्षित कहते हैं। (2) एक प्राचार्य की सन्तति को कुल कहते हैं अथवा चान्द्र आदि साधु समुदाय विशेष को कुल कहते हैं / (3) गणः-कुल के समुदाय को गण कहते हैं अथवा सापेक्ष तीन कुलों के समुदाय को गण कहते हैं /