________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह पाँच निषद्या में हस्तिशुण्डिका के स्थान पर उत्कटुका भी कहते हैं। उत्कटुका:-आसन पर कून्हा (पुत ) न लगाते हुए पैरों पर बैठना उत्कटुका निषद्या है। (ठाणांग 5 सूत्र 366 टीका) (ठाणांग 5 सूत्र 400) ३५६-भगवान् महावीर से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच स्थान: (1) दण्डायतिक (2) लगण्डशायी। (3) आतापक (4) अप्रावृतक। (5) अकण्डूयक। (1) दण्डायतिकः-दण्ड की तरह लम्बे होकर अर्थात् पैर फैला कर बैठने वाला दण्डायतिक कहलाता है। (2) लगण्डशायी:-दुःसंस्थित या बांकी लकड़ी को लगण्ड कहते हैं / लगण्ड की तरह कुबड़ा होकर मस्तक और कोहनी को जमीन पर लगाते हुए एवं पीठ से जमीन को स्पर्श न करते हुए सोने वाला साधु लगण्ड शायी कहलाता है। (3) आतापक:-शीत, आतप आदि सहन रूप आतापना लेने वाला साधु आतापक कहा जाता है। (4) अप्रावृतका-वस्त्र न पहन कर शीत काल में ठण्ड और ग्रीष्म में घास का सेवन करने वाला अपावृतक कहा जाता है। (5) अकण्डूयक:-शरीर में खुजली चलने पर भी न खुजलाने वाला साधु अकण्डूयक कहलाता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 366)