________________ 372 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला के अभिग्रह वाला साधु उत्कटुकासनिक कहा जाता है। (3) प्रतिमास्थायी:-एक रात्रि आदि की प्रतिमा अङ्गीकार कर कायोत्सर्ग विशेष में रहने वाला साधु प्रतिमास्थायी है। (4) वीरासनिकः-पैर जमीन पर रख कर सिंहासन पर बैठे हुए पुरुष के नीचे से सिंहासन निकाल लेने पर जो अवस्था रहती है उस अवस्था से बैठना वीरासन है। यह आसन बहुत दुष्कर है / इस लिये इसका नाम वीरासन रखा गया है। वीरासन से बैठने वाला साधु वीरासनिक कहलाता है / (5) नैषधिक:-निषद्या अर्थात् बैठने के विशेष प्रकारों से बैठने वाला साधु नैप धिक कहा जाता है। . (ठाणांग 5 सूत्र 366) ३५८-निषद्या के पांच भेदः (1) समपादयुता। (2) गोनिषधिका / (3) हस्तिशुण्डिका। , (4) पर्यङ्का / (5) अद्ध पर्यङ्का / (1) समपादयुताः-जिस में समान रूप से पैर और कूल्हों से पृथ्वी या आसन का स्पर्श करते हुए बैठा जाता है वह समयादपुता निषद्या है। (2) गोनिषधिका:-जिस आसन में गाय की तरह बैठा जाता है वह गोनिषधिका है। (3) हस्तिशुण्डिका:-जिस आसन में कूल्हों पर बैठ कर एक पैर ऊपर रक्खा जाता है वह हस्तिशुण्डिका निषद्या है। (4) पर्यङ्काः-पासन से बैठना पर्यङ्का निषद्या है। (5) अर्द्ध पर्यङ्का:-जंघा पर एक पैर रख कर बैठना अर्द्ध पर्यत्रा निषद्या है।