________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ज्ञानादि के समीप रह कर भी जो उन्हें अपनाता नहीं है वह पासत्थ (पार्श्वस्थ) है। ___ज्ञान, दर्शन, चारित्र में जो सुस्त रहता है अर्थाद उद्यम नही करता है वह पासत्थ कहा जाता है। पाश का अर्थ है बन्धन / मिथ्यात्वादि बन्ध के हेतु भी भाव से पाश रूप है। उनमें रहने वाला अर्थात् उनका आचरण करने वाला पासत्थ ( पाशस्थ ) या पार्श्वस्थ कहलाता है। पामत्थ के दो भेदः--सर्व पासत्थ और देश पासत्थ / सर्व पासत्थः-जो केवल साधु वेषधारी है। किन्तु ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना नहीं करता वह सर्व पासत्थ कहा जाता है। देश पासत्थ-विना कारण शय्यातर पिण्ड, राज पिण्ड, नित्य पिण्ड, अग्र पिण्ड, और सामने लाये हुए आहार का भोजन करने वाला देश पासत्थ कहलाता है / (2) अबसन्नः-समाचारी के विषय में प्रमाद करने वाला साधु अवसन कहा जाता है। अवसन्न के दो भेद(१) सर्व अयसन्न। (2) देश अवसन्न / सर्व अवसन्नः-जो एक पक्ष के अन्दर पीठ फलक आदि के बन्धन खोल कर उनकी पडिलेहना नहीं करता अथवा वार बार सोने के लिये संथारा बिछाये रखता