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________________ 356 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ३४५-संभोगी साधुओं को अलग करने के पाँच बोल पाँच बोल वाले स्वधर्मी संभोगी साधु को विसंभोगी अर्थात् संभोग से पृथक मंडली बाहर करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता / (1) जो अकृत्य कार्य का सेवन करता है। (2) जो अकृत्य सेवन कर उसकी आलोचना नहीं करता। (3) जो आलोचना करने पर गुरु से दिये हुए प्रायश्चित्त का सेवन नहीं करता। (4) गुरु से दिये हुए प्रायश्चित्त का सेवन प्रारम्भ करके भी पूरी तरह से उसका पालन नहीं करता। (5) स्थविर कल्पी साधुओं के आचार में जो विशुद्ध आहार शय्यादि कल्पनीय हैं और मासकल्प आदि की जो मर्यादा है उसका अतिक्रमण करता है / यदि साथ वाले कहें कि तुम्हें ऐसा न करना चाहिये, ऐसा करने से गुरु महाराज तुम्हें गच्छ से बाहर कर देंगे तो उत्तर में वह उन्हें कहता है कि मैं तो ऐमा ही करूँगा। गुरु महाराज मेरा क्या कर लेंगे? नाराज होकर भी वे मेरा क्या कर सकते हैं ? आदि। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 368) ३४६-पारंचित प्रायश्चित्त के पाँच बोल श्रमण निम्रन्थ पाँच बोल वाले साधर्मिक साधुओं को दशवां पारंचित प्रायश्चित्त देता हुआ आचार और आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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