________________ 343 श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह ३३३--धार्मिक पुरुष के पांच आलम्बन स्थान:-- श्रुत चारित्र रूप धर्म का सेवन करने वाले पुरुष के पांच स्थान आलम्बन रूप हैं अर्थात् उपकारक हैं:-- (1) छः काया। (2) गण / (3) राजा। (4) गृहपति / (5) शरीर / (1) छः कायाः-पृथ्वी आधार रूप है / वह सोने, बैठने, उपकरण रखने, परिठवने आदि क्रियाओं में उपकारक है / जल पीने, वस्त्र पात्र धोने आदि उपयोग में आता है / आहार, ओसावन, गर्म पानी आदि में अग्नि काय का उपयोग है। जीवन के लिये वायु की अनिवार्य आवश्यकता है / संथारा, पात्र, दण्ड, वस्त्र, पीढ़ा, पाटिया वगैरह उपकरण तथा आहार औषधि आदि द्वारा वनस्पति धर्म पालन में उपकारक होती है। इसी प्रकार त्रस जीव भी धर्म-पालन में अनेक प्रकार से सहायक होते हैं / (2) गणः-गुरु के परिवार को गण या गच्छ कहते हैं / गच्छ वासी साधु को विनय से विपुल निर्जरा होती है तथा सारणा, वारणा आदि से उसे दोषों की प्राप्ति नहीं होती / गच्छवासी साधु एक दूसरे को धर्म पालन में सहायता करते हैं। (3) राजा:-राजा दुष्टों से साधु पुरुषों की रक्षा करता है। इस लिए राजा धर्म पालन में सहायक होता है।